https://www.facebook.com/roorkeeweather/ रुड़की में इंजीनियरी कौशल का बेहतरीन उदाहरण है सोलानी नदी पर बना जलसेतु| 1847-49 में बनें इस डाटदार पुल (arch bridge) के नीचे सोलानी नदी और ऊपर गंगा नहर बहती है| इसमें 50 फुट पाट की 15 डाटें हैं, जिनके ऊपर से होकर 164 फुट चौड़ी और 10 फुट गहरी नहर सोलानी नदी को पार करती है। इस नहर का तीन मील से अधिक भाग पक्की चिनाई का है| ऐसा कहा जाता है कि पहली बार में असफल होने पर इंजीनियर कोटले ने इस पुल का पुनः निर्माण कराया और नहर में पानी छोड़े जाने से पूर्व वे पुल के नीचे कुर्सी डालकर बैठ गए ताकि यदि वे पुनः असफल हुए तो खुद भी वहीं समाधिस्थ हो जाए| कुछ वर्ष पूर्व एक और नए पुल का निर्माण करके नहर को बड़ी खूबसूरती से दो भागों में बांटा गया| बरसात के दिनों में सोलानी नदी पानी से भर जाती है तथा बहुत ही खूबसूरत दृश्य दिखाई देता है|
https://www.facebook.com/roorkeeweather/ रुड़की एक बहुत खूबसूरत शहर है| रुड़की की खूबसूरती का बखूबी इस्तेमाल प्रोडयूसर और डायरेक्टर मेहबूब खान ने 1962 में अपनी फिल्म "सन ऑफ़ इंडिया" में किया था| शकील बदायूंनी के लिखे गीत “नन्हा-मुन्ना राही हूं, देश का सिपाही हूं, बोलो मेरे संग- जय हिंद! जय हिंद! ” में रुड़की के सोलानी नदी के पुल, नहर और शेरों की मूर्तियों का बहुत सुंदर फिल्मांकन किया गया है| देखिये इस गाने में फिल्माई गयी रूडकी शहर की तस्वीरें|
रुड़की के सुनहेरा गांव में हैं लगभग 250 वर्ष पुराना बरगद का पेड़ जो हमारे भारत देश की आज़ादी की लड़ाई का एक साक्षी है| 19 वीं सदी में ब्रिटिश सरकार द्वारा इस पेड़ की शाखाओं पर न जाने कितने ही स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर लटका दिया गया था| कई क्रांतिकारियों को जो ब्रिटिश सरकार के शासकों के आदेशों की अवहेलना करते थे और भारत देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ने की हिम्मत करते थे उन्हें इसी पेड़ पर भीड़ के सामने फांसी दी जाती थी| स्थानीय लोग बताते हैं कि इस पेड़ पर लगभग 200 स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गयी थी| कुछ वर्ष पूर्व पर्यटन विभाग द्वारा इस पेड़ के ऐतिहासिक महत्व को देखकर स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति में एक स्मारक बनवाया गया था| इस पेड़ के समीप जाते ही शहीदों के सम्मान में सिर अपने आप झुक जाता है|
https://www.facebook.com/roorkeeweather/ आईआईटी, रुड़की सबसे पुरानी तकनीकी संस्थान है जो अपनी शिक्षा के लिए प्रसिद्ध है। इसका निर्माण 1847 में हुआ था और इसका मुख्य उद्देश्य गंगा नहर के निर्माण के लिए प्रशिक्षण देना था। अब यह युवाओं को तकनीकी शिक्षा प्रदान करता है ताकि उन्हें वैश्विक चुनौतियों के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। यह भारत और दुनिया में सबसे अच्छी शिक्षा संस्थानों में से एक है और तकनीकी उन्नति में योगदान दिया है।
https://www.facebook.com/roorkeeweather/ सोलानी एक्यूक्डक्ट एक हाइड्रो निर्माण है जो सोलानी नदी पर बना है। इसका निर्माण 1846 में अंग्रेजों द्वारा किया गया था इंजीनियरिंग में यह सबसे अच्छा इंजीनियरिंग चमत्कार है। यह रूड़की के लोगों के लिए आकर्षण का एक प्रमुख स्रोत है। शानदार धनुषाकार जल संचयन शेर संरचनाओं के साथ अलंकृत है। फ्रंटिसपीस ने दो सुरुचिपूर्ण विवरण दिखाए: इंग्लैंड से आयातित सजावटी लौह रेलिंग और बड़े पत्थर शेरों के जोड़े, जो स्थानीय रूप से किए गए और जलसेतु के प्रत्येक छोर पर रखे गए
रुड़की, भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित एक नगर और नगरपालिका परिषद है। इसे रुड़की छावनी के नाम से भी जाना जाता है और यह देश की सबसे पुरानी छावनियों में से एक है[2] और १८५३ से बंगाल अभियांत्रिकी समूह (बंगाल सैप्पर्स) का मुख्यालय है।
रूड़की का नाम रुरी/ रूड़ी से पड़ा, जो बड़गूजर राजपूत सरदार की पत्नी थी और पहले इसे 'रुरी की' भी लिखा जाता था। स्थानीय भाषी ग्रामवासियों का मानना है की इसे इसका नाम "रोरोन की" अर्थात रोर का निवास से मिला।
१८वीं सदीं में रूड़की सोलानी नदी के पश्चिमी तट पर बसा गांव था| तात्कालिक सहारनपुर जिले के पंवार(परमार) गुर्जरों (जो बड़गूजर कहलाते थे )की लंढौरा रियासत (पूर्व की झबरेड़ा रियासत)के अंर्तगत आता था| यह क्षेत्र गूजरों द्वारा शासित होने के कारण 1857 ई० तक " गुजरात(सहारनपुर)" कहलाता रहा , 1857 की क्रांति में गुर्जरो व रांघड़ो द्वारा किए गए भयंकर विद्रोहो व उपद्रवो के कारण अंग्रेजों ने 1857 की क्रांति के दमन के बाद गुर्जरों के प्रभाव को कम करने के लिए तमाम सरकारी दस्तावेजों व अभिलेखो में " सहारनपुर- गुर्जरात्र(गुजरात)" नाम पर प्रतिबंध लगा दिया गया और सिर्फ ' सहारनपुर' नाम दर्ज करने के आदेश जारी कर दिए गए| (देखिए- सहारनपुर गजेटियर)
यह 1813 ई० में लंढौरा राज्य के राजा रामदयाल सिंह पंवार की मृत्यु के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आ गया| अंग्रेजों ने गुर्जरो की गंगा- यमुना के दोआब में लगातार बढ़ती जा रही ताकत को कमजोर करने व साथ ही रूहेलाओं ( नजीबाबाद क्षेत्र ) को अपने नियंत्रण में लाने के उद्देश्य से रूड़की गांव में छावनी की स्थापना की| जिसका उपयोग 1824 ई० में लंढौरा रियासत (गुजरात- सहारनपुर) के ताल्लुका व गुर्जर किले कुंजा बहादुरपुर के राजा विजय सिंह पंवार के नेतृत्व में लड़े गए पहले स्वतंत्रता संग्राम व 1857 ई० में सहारनपुर(गुजरात) के गुर्जरों व रांघडों द्वारा किये गए भयंकर विद्रोहो को कुचलने के लिए किया गया| अप्रैल 1842 में अंग्रेज अधिकारी सर प्रोबे कोटले के नेतृत्व में गंगनहर निर्माण हेतू खुदाई प्रारंभ की गई , तथा गंगनहर के निर्माण कार्य व रखरखाव के लिए 1843 में नहर के किनारे canal workshop व Iron foundry की स्थापना की गई |
गंगनहर निर्माण में लगे अभियंताओ व श्रमिको को प्रशिक्षण देनें के उद्देश्य से 1845 ई० में ' सिविल इंजीनियरिंग स्कूल ' स्थापना की गई जिसका नाम 1847 ई० में " थॉमसन कालेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग , रूड़की" कर दिया गया और यह दुनिया में स्थापित होने वाला पूरे एशिया महाद्वीप व भारत का पहला इंजीनियरिंग कालेज बन गया , 1947 ई. में इसकी सेवाओं व महत्ता को देखते हुए इसे विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया गया तथा इसका नाम बदलकर " रूड़की विश्वविद्यालय" ' University of Røorkee' कर दिया गया| 21 सितंबर वर्ष 2001 में संसद में कानून पारित कर भारत सरकार ने इसे देश के 07वें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) के रूप में मान्यता दी|
रूड़की नहर की खुदाई के लिए सर्वप्रथम 22 दिसंबर 1851ई. में भाप के इंजन से चलने वाली देश की पहली रेलगाड़ी (मालगाड़ी) रूड़की व पिरान कलियर के बीच ट्रैक(track) बिछाकर चलाई गई थी| रूड़की गंगनहर का निर्माण कार्य 1854 में पूर्ण हुआ तथा इसे 08 अप्रैल 1854 को चालू कर दिया गया जिससे लगभग 5000 गांवो की लगभग 767000 एकड़ भूमि की सिंचाई की जाती है तथा उत्तराखंड राज्य के जनपद हरिद्वार के पथरी व मौह्म्मदपुर गांवो मे इस पर जल-विद्युत गृह बनाकर बिजली उत्पादन भी किया जा रहा है|
रुड़की 29.87°N 77.88°E.[3] के अंक्षाशों पर स्थित है। इसकी समुद्रतल से ऊँचाई २६८ मीटर है। यह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से १७२ किमी उत्तर में गंगा और यमुना नदियों के मध्य, हिमालय की तलहटी में स्थित है। ९ नवंबर, २००० को उत्तराखण्ड राज्य बनने से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था।[4]
मौसम
रूड़की भौगोलिक रूप से किसी भी बड़े जलाशय से दूर होने और हिमालय के निकट होने के कारण रुड़की का मौसम बहुत चरमी और अस्थिर है। ग्रीष्म ऋतु मार्च के अतिकाल से आरम्भ होती है जो जुलाई तक रहती है और औसत तापमान २८० से. रहता है। मॉनसून का मौसम जुलाई से आरम्भ होकर अक्टूबर तक रहता है और मॉनसून के बादलों की हिमालय द्वारा रिकावट के कारण प्रचण्ड वर्षा होती है। मॉनसून के बाद का मौसम अक्टूबर से आरम्भ होता है और नवंबर के अंत तक जारी रहता है, जब औसत तापमान २१० से. से १५० से. तक तहता है। शीत ऋतु दिसम्बर में आरम्भ होती है, जब न्यूनतम तापमान जमाव बिन्दू तक पहुँच जाता है जिसका कारण है हिमालय से आने वाली अवरोहण पवनें। कुल वार्षिक वर्षा १०२ इंच तक होती है।
रुड़की के निकट प्रमुख बड़े नगर हैं देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, सहारनपुर, मुज़फ्फरनगर, मेरठ, अंबाला और चण्डीगढ़ हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग ५८ (एनएच५८) (दिल्ली - हरिद्वार - माणा पास) और एनएच७३ (पञ्चकुला/चण्डीगढ़ - यमुना नगर- रुड़की) रुड़की से होकर जाते हैं।
२००१ की जनगणना के आधार पर, रुड़की की जनसंख्या २,५२,७८४ है जिसमें से पुरुष ५३% और महिलाएँ ४७% हैं। रुड़की की औसत साक्षरता सर ८२% है, जो राष्ट्रीय औसत ६४% से अधिक है: पुरुष साक्षरता ८७% और महिला साक्षरता ८१% है। ११% जनसंख्या ६ वर्ष से कम आयुवर्ग की है। इस नगर में हिन्दू ६१%, मुसलमान २८%, सिख/पंजाबी ८%, जैन २.७% और ईसाई ०.३% हैं।
कुल २,५२,७८४ की जनसंख्या के साथ, यह उत्तराखण्ड में हरिद्वार और हल्द्वानी के बाद तीसरी सबसे बड़ी नगरपालिका परिषद है।
सिंचाई अनुसंधान संस्थान, रुड़की हाइड्रोलिक मॉडलिंग, सिविल इंजीनियरिंग, सामग्री परीक्षण और भूजल अध्ययन के क्षेत्र में एक प्रमुख संस्थान है। यह उत्तराखंड के सिंचाई विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत उत्तराखंड संस्थान की सरकार है। यह "कोई लाभ नहीं हानि" आधार पर अध्ययन चलाता है। संस्थान के बहादराबाद स्टेशन में हाइड्रोलिक मॉडल की सुविधा भारत में सर्वश्रेष्ठ में से एक है। मॉडल अध्ययन के लिए उपलब्ध मुक्ति 8 क्यूमेक तक है और 10 मीटर तक की गिरावट है, इसलिए मॉडल अपेक्षाकृत बड़े हैं और बेहतर परिणाम देते हैं।
सामग्री परीक्षण सुविधाओं में मृदा परीक्षण, असर क्षमता पारगम्यता, रॉक टेस्टिंग जैसे मॉड्यूलस ऑफ विरूपण, पुल आउट, टनल टेस्टिंग, ब्रिज लोड टेस्ट, सीमेंट इकल्लीेट, ईंट एंड स्टील की गुणवत्ता, कंक्रीट मिक्स डिज़ाइन इत्यादि की जांच शामिल है।
यह संस्थान ग्राउंड वाटर से संबंधित अध्ययनों में भी व्यस्त है, जैसे कि उप सतह के पानी के संयोजन और पानी का प्रवेश, नहर की छत की उपयुक्तता, नहरों से टपका, ट्यूब कुओं के लिए एक्विफेर की सूटिबिलिटी, बारहमासी से पानी के पुनर्जन्म / सेपेज के अध्ययन नदियों और कृत्रिम भूजल पुनर्भरण आदि।
https://www.facebook.com/roorkeeweather/ भारत में चलाने के लिए पहला लोकोमोटिव और ट्रेन यह 1 9वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ऊपरी गंगा नहर के निर्माण के लिए रुड़की और पिरान कलियर के बीच चल रहा था। यह एक मानक गोज़ लॉक था यह प्रतिकृति रुड़की रेलवे स्टेशन से बाहर स्थापित है।
कॉटले की नहर: एक इंजीनियरिंग चमत्कार Cautley सत्रह वर्ष की आयु में भारत आए और बंगाल आर्टिलरी में शामिल हो गए 1825 में, उन्होंने कप्तान रॉबर्ट स्मिथ की सहायता की, जो पूर्वी यमुना नहर के निर्माण के प्रभारी इंजीनियर थे। 1836 तक, वह अधीक्षक - नहरों के जनरल थे। शुरू से ही उन्होंने गंगा नहर के निर्माण के अपने सपने की दिशा में काम किया, और जंगलों और ग्रामीण इलाकों में घूमना और घूमने में छह महीने बिताए, प्रत्येक स्तर और खुद को मापने के लिए, पूरी रात बैठे अपने नक्शे पर स्थानांतरित करने के लिए। उन्हें विश्वास था कि 500 किलोमीटर की नहर संभव है। उनकी प्रोजेक्ट में कई आपत्तियां और बाधाएं थीं, उनमें से ज्यादातर वित्तीय थीं, लेकिन कॉटली ने पूरा प्रयास किया और आखिरकार पूर्व भारत की कंपनी को उसे वापस करने के लिए राजी किया। . . नहर खुदाई 1839 में शुरू हुई। कॉटले को अपनी ईंट बनाना पड़ा - उनमें से लाखों - अपनी ईंट क्लिनी और अपने ही मोर्टार एक सौ हजार टन चूने मोर्टार में चले गए, जिनमें से एक अन्य मुख्य घटक सुरखी था, जिस पर अधिक से अधिक ईंटें पीसकर पीस रही थीं। मोर्टार, घूर, जमीनी दाल और जूट फाइबर को मजबूत करने के लिए इसे जोड़ा गया था।
शुरूआत में, हरद्वार में याजकों से विरोध आया, जिन्होंने महसूस किया कि पवित्र गंगा का पानी कैद हो जाएगा। कोटाले ने बांध में एक संकीर्ण अंतराल छोड़ने के लिए सहमति देकर शांत कर दिया, जिसके माध्यम से नदी का पानी अनियंत्रित हो सकता है। उन्होंने याजकों पर आरती के साथ अपनी परियोजना का उद्घाटन करते हुए, गुड बिगिनिंग्स के भगवान गणेश की पूजा की। उन्होंने नदी पर पवित्र स्नान घाटों की मरम्मत भी की। नहर बैंकों को भी अपने स्वयं के घाटों को पानी से नीचे की ओर ले जाने के लिए कदम उठाना पड़ता है। . . नहर के हेडवर्क्स हरद्वार में हैं, जहां गंगा हिमालय के माध्यम से इसकी राजसी यात्रा को पूरा करने के बाद मैदानों में प्रवेश करती है। हरिद्वार के नीचे, कैटले को कुछ नहरों के लिए नए पाठ्यक्रमों का खिसकना था जो कि नहर को धमकी दी थी। उन्होंने उन्हें चार स्टीम में एकत्र कर लिया और उन्हें चार मार्गों के माध्यम से नहर पर ले लिया। रूरकी के पास, जमीन बहुत तेज़ी से गिर गई और यहां से कोटाले को सोलानी नदी के किनारे आधा किलोमीटर की दूरी पर नहर में एक अंचल का एक पुल बनाया गया - एक अनूठा इंजीनियरिंग करतब। रुड़की में नहर पाषाणु नदी की तुलना में पच्चीस मीटर अधिक है जो लगभग समानांतर बहती है। . . नहर पर अधिकांश खुदाई काम मुख्य रूप से ओएड्स, एक जिप्सी जनजाति द्वारा की गई थी, जो उत्तर-पश्चिम भारत के ज्यादातर हिस्सों के लिए पेशेवर खोदने वाले थे। उनके काम में उन्हें बहुत गर्व था बेहद गरीबों के माध्यम से, कॉटले ने उनको खुश और लापरवाह बहुत कुछ पाया जो एक बहुत संगठित तरीके से काम करते थे।
https://www.facebook.com/roorkeeweather/क्या 1990 के दशक में पुराने जलसेक को ध्वस्त कर दिया गया था? नहींं: यहाँ नीचे की ओर से दृश्य है, जहां नए जलसेतु से पानी, दाईं ओर, पुराने से पानी मिलती है... वही, एक अलग दृष्टिकोण से पुरानी जल संचयन अभी भी बहुत उपयोग में था; वास्तव में, वर्तमान के माध्यम से यह तेज था, जबकि नए संरचना में पानी लगभग अभी भी था।
https://www.facebook.com/roorkeeweather/1990 में, जब पिछली तस्वीरें ली गईं, तो विश्व बैंक ने एक नई संरचना के साथ सोलानी एक्वाक्यूट को बदलने के लिए एक परियोजना को वित्त पोषण किया था। क्या इसे बनाया गया था? किसे पता था? यह ऐसी कहानी नहीं थी, जिसे बहुत सारे प्रेस प्लेबैक मिला। पंद्रह साल बाद, मौके ने एक और नज़र लेने के लिए खुद को पेश किया: यहाँ आंखों से क्या मिला। काफी झटका
सन् 1953-55 में संत शिरोमणि श्री 108 श्री वासदेव शाह सिंघ जी महाराज ने रुड़की शहर में अपने पूर्वजों भाई सोमा शाह जी एवं सति सांवल शाह सिंघ जी की स्मृति में एक गुरूद्वारा जो कि श्री सुखधाम साहिब के नाम से प्रसिद्ध है व सुखदेव नगर की स्थापना की। यह सुखदेव नगर आज रुड़की शहर की एक प्रसिद्ध आवासीय काॅलोनी है। गुरूद्वारा साहिब में प्रतिदिन नितनेम, सुखमनी साहिब जी का पाठ, आसा दी वार का कीर्तन व गुरबाणी कीर्तन का आयोजन किया जाता है। यहाँ पर सहज पाठ के निरंतर प्रवाह के साथ समय-समय पर अखण्ड पाठ साहिब की लड़ियों का भी आयोजन किया जाता है।
गुरूद्वारा श्री सुखधाम साहिब, रुड़की में प्रतिवर्ष 30, 31 मार्च व 1 अप्रैल को गुरदेव पिता ब्रह्मलीन संतरेन बाबा रघबीर शाह सिंघ जी महाराज एवं गुरमाता ब्रह्मलीन मल्लिका निरमान शाह जी की मधुर स्मृति में सालाना समारोह, जुलाई/अगस्त के महीने में 3 दिन का गुरू पूर्णिमा उत्सव व 24, 25 एवं 26 नवम्बर को संत शिरोमणि श्री 108 श्री वासदेव शाह सिंघ जी महाराज की पुण्यतिथि गुरसंगत सम्मेलन के रूप में आयोजित की जाती है। इन आयोजनों/समारोहों में भाग लेने के लिए देश से हज़ारों की संख्या में संगत यहां पहुंचती है।
प्रतिमाह संग्रांद, अमावस्या एवं पूर्णमासी को कीर्तन दरबार का आयोजन किया जाता है, उपरांत गुरू का अटूट लंगर वरताया जाता है। श्री गुरू नानक देव जी एवं श्री गुरू गोबिंद सिंघ जी का प्रकाश पर्व भी यहां पर बड़े उत्साह, श्रद्धा एवं भव्य तरीके से मनाया जाता है। प्रति वर्ष वैसाखी का पर्व भी यहां बड़े उत्साह व श्रद्धा से मनाया जाता है।eweather/
संस्थानों और इंजीनियरिंग साइटों में रोमिंग के बाद, अब यह कुछ मजा करने का समय है और आप इसे क्रिस्टल वर्ल्ड में कर सकते हैं। यह रूड़की के पास स्थित सबसे बड़ा मनोरंजन पार्क है। यहां आप कई पानी के खेल और मजेदार सवारी का आनंद ले सकते हैं। यह मशहूर मनोरंजन पार्क बच्चों और वयस्कों द्वारा बहुत पसंद आया है।
https://www.facebook.com/roorkeeweather/रुड़की में सबसे प्रसिद्ध आकर्षण है। अलाउद्दीन अली अहमद सबीर कलयरी के लिए समर्पित, पिरान कलियर शरीफ दरगाह का दौरा साल भर कई भक्तों द्वारा किया जाता है। यह प्रसिद्ध सम्राट इब्राहिम लोदी द्वारा बनाया गया था हरिद्वार में गंगा नहर के किनारे स्थित यह भारत में मुस्लिम और हिंदू दोनों के लिए सबसे सम्मानित मंदिर है। दरगाह की कब्र हरिद्वार के दक्षिण में स्थित है। यह अपनी रहस्यमय शक्तियों के लिए प्रसिद्ध है जो अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करती है। यह पूरे वर्ष के लाखों लोगों द्वारा देखा जाता है।
यदि आपको सैर करने का शौक है तो एक बार के आलीशान कब्रिस्तान में जरूर आएं। घबराने की जरुरत नहीं है। यहां पर आपको कई ऐसे स्मारक मिलेंगे, जिन्हें देखकर आपका मन खुश हो जाएगा। श्मशान घाट और कब्रिस्तान के नाम से डरना अब बीते जमाने की बात हो गई है। रुड़की में अंग्रेजों का कब्रिस्तान है, जिसे पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा राष्ट्रीय स्मारक के रुप में संरक्षित किया जा रहा है। यहां आने पर कतई महसूस नहीं होता कि आप कब्रिस्तान में हैं, क्योंकि ये पार्क जैसा नजर आता है।
रुड़की
संरक्षित स्मारक होने के नाते इसकी सीमाओं से 200 मीटर तक के क्षेत्र में खनन प्रक्रिया और निर्माण पर रोक लगाई गई है। रुड़की शहर में गंग नहर के किनारे स्थित विशाल क्षेत्र में फैले इस अंग्रेजों के कब्रिस्तान में एक हजार से अधिक छोटी बड़ी कब्र हैं। इनमें से कुछ कब्र आज भी भूलाए नहीं भूलती हैं।
इतिहास के जानकार श्रीगोपाल नारंसन ने बताया कि एक अंग्रेज ब्रिगेडियर की बेटी मोना की अल्पायु में 23 अप्रैल, 1919 में मौत हो गई थी। उसकी कब्र को स्मारक के रूप में संजोया गया है। इसी तरह फ्लोरेंस मैरी, जिनकी मौत 18 दिसंबर,1907 को महज 16 साल की उम्र में हो गई थी। इस स्मारक को देखते ही आंखें नम हो जाती हैं। अंग्रेजों का यह ऐतिहासिक कब्रिस्तान 200 साल से भी ज्यादा पुराना है।
कई कब्रों को दिया गया स्मारक का रूप इस कब्रिस्तान में उन ब्रिटिश अधिकारियों की कब्र हैं, जिनकी अंग्रेजी हूकुमत में तूती बोलती थी। इसमें से एक कब्र ब्रिगेडियर रॉयल इंजीनियर्स जेआर चिस्टनी की है, जो महज 36 साल की उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह गए थे। इसी तरह लेफ्टिनेंट जनरल सर हेराल्ड विलियम, जो कि रॉयल इंजीनियर्स में रहते हुए दुनिया को छोड़ कर चले गए थे। उनकी कब्र को भव्य स्मारक का रुप दिया गया है और ये कब्रिस्तान का आकर्षण है।