यदि आपको सैर करने का शौक है तो एक बार के आलीशान कब्रिस्तान में जरूर आएं। घबराने की जरुरत नहीं है। यहां पर आपको कई ऐसे स्मारक मिलेंगे, जिन्हें देखकर आपका मन खुश हो जाएगा। श्मशान घाट और कब्रिस्तान के नाम से डरना अब बीते जमाने की बात हो गई है। रुड़की में अंग्रेजों का कब्रिस्तान है, जिसे पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा राष्ट्रीय स्मारक के रुप में संरक्षित किया जा रहा है। यहां आने पर कतई महसूस नहीं होता कि आप कब्रिस्तान में हैं, क्योंकि ये पार्क जैसा नजर आता है।
रुड़की
संरक्षित स्मारक होने के नाते इसकी सीमाओं से 200 मीटर तक के क्षेत्र में खनन प्रक्रिया और निर्माण पर रोक लगाई गई है। रुड़की शहर में गंग नहर के किनारे स्थित विशाल क्षेत्र में फैले इस अंग्रेजों के कब्रिस्तान में एक हजार से अधिक छोटी बड़ी कब्र हैं। इनमें से कुछ कब्र आज भी भूलाए नहीं भूलती हैं।
इतिहास के जानकार श्रीगोपाल नारंसन ने बताया कि एक अंग्रेज ब्रिगेडियर की बेटी मोना की अल्पायु में 23 अप्रैल, 1919 में मौत हो गई थी। उसकी कब्र को स्मारक के रूप में संजोया गया है। इसी तरह फ्लोरेंस मैरी, जिनकी मौत 18 दिसंबर,1907 को महज 16 साल की उम्र में हो गई थी। इस स्मारक को देखते ही आंखें नम हो जाती हैं। अंग्रेजों का यह ऐतिहासिक कब्रिस्तान 200 साल से भी ज्यादा पुराना है।
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कई कब्रों को दिया गया स्मारक का रूप
इस कब्रिस्तान में उन ब्रिटिश अधिकारियों की कब्र हैं, जिनकी अंग्रेजी हूकुमत में तूती बोलती थी। इसमें से एक कब्र ब्रिगेडियर रॉयल इंजीनियर्स जेआर चिस्टनी की है, जो महज 36 साल की उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह गए थे। इसी तरह लेफ्टिनेंट जनरल सर हेराल्ड विलियम, जो कि रॉयल इंजीनियर्स में रहते हुए दुनिया को छोड़ कर चले गए थे। उनकी कब्र को भव्य स्मारक का रुप दिया गया है और ये कब्रिस्तान का आकर्षण है।
इस कब्रिस्तान में उन ब्रिटिश अधिकारियों की कब्र हैं, जिनकी अंग्रेजी हूकुमत में तूती बोलती थी। इसमें से एक कब्र ब्रिगेडियर रॉयल इंजीनियर्स जेआर चिस्टनी की है, जो महज 36 साल की उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह गए थे। इसी तरह लेफ्टिनेंट जनरल सर हेराल्ड विलियम, जो कि रॉयल इंजीनियर्स में रहते हुए दुनिया को छोड़ कर चले गए थे। उनकी कब्र को भव्य स्मारक का रुप दिया गया है और ये कब्रिस्तान का आकर्षण है।
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